डॉ. अशरफ़ अली ने दी बधाई
जागता झारखंड नई दिल्ली : शुक्रवार को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (नई दिल्ली) में ख़्वाजा अब्दुल मुंतक़िम की अनेक महत्वपूर्ण और शोधपरक पुस्तकों का लोकार्पण एक भव्य कार्यक्रम में सम्पन्न हुआ। इस आयोजन का संयोजन एम.आर. पब्लिकेशन्स के सहयोग से किया गया जिसमें देश की प्रतिष्ठित हस्तियों, विधिवेत्ताओं, विद्वानों और साहित्य जगत की प्रतिनिधि शख्सियतों ने भाग लिया।
कार्यक्रम में जिन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ उनमें प्रमुख हैं:
‘भारतीय न्याय संहिता, 2023’ (त्रिभाषी संस्करण) नज़ाइर और टिप्पणियों के साथ तथा ‘लोकतांत्रिक राज्य में पुलिस की भूमिका’ – जिनका लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं पूर्व एनएचआरसी अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने किया । त्रिभाषी कानून शब्दकोश एवं भारतीय संविधान’ – जिसे पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री न्यायमूर्ति इक़बाल अंसारी ने जारी किया ।
‘सर सैयद अहमद ख़ान – वह शख्सियत जिसे मुसलमान-ए-हिंद हमेशा याद करेंगे’ और ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया का सेक्युलर चरित्र’ – जिनका लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एम.वाई. कुरैशी ने किया। काश भारत का विभाजन न हुआ होता’ और ‘कानूनी अदब का दरख़्शां सितारा – ख़्वाजा अब्दुल मुंतक़िम’ (लेखिका डॉ. अतिया रईस) – जिनका लोकार्पण प्रख्यात समाजसेवी एवं राजस्थान मुख्यमंत्री की आर्थिक परामर्शदात्री परिषद के सदस्य श्री नवेद ख़ान ने किया।कार्यक्रम का संचालन हिबा ख़्वाजा ने गरिमामय ढंग से किया। वक्ताओं ने अपने संबोधनों में ख़्वाजा अब्दुल मुंतक़िम की विद्वत्तापूर्ण एवं साहित्यिक सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी कृतियाँ न केवल विधि एवं संविधान के विद्यार्थियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं, बल्कि समसामयिक सामाजिक विमर्श में भी महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देती हैं।
इस अवसर पर डॉ. अशरफ़ अली ने बधाई देते हुए कहा:
“मेरी सहकर्मी डॉ. अतिया रईस, जिनके साथ मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में अध्यापन का सौभाग्य मिला है, केवल एक विद्वान और लेखिका ही नहीं बल्कि अपनी शोधपरक एवं आलोचनात्मक दृष्टि के कारण साहित्यिक जगत में विशिष्ट पहचान रखती हैं। उनकी कृति ‘कानूनी अदब का दरख़्शां सितारा – ख़्वाजा अब्दुल मुंतक़िम’ साहित्यिक और अकादमिक हलकों के लिए एक अनमोल योगदान है। इस अवसर पर मैं उन्हें दिल की गहराइयों से विशेष बधाई देता हूँ।”इसी तरह एम.आर. पब्लिकेशन्स के प्रमुख श्री अब्दुस्समद भी बधाई के पात्र हैं, जिनकी अथक मेहनत, विद्वतापूर्ण रुचि और प्रकाशन सेवाओं ने इस आयोजन को साकार किया। उर्दू और अन्य भाषाओं के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान सराहनीय है। साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों, विद्वानों और वक्ताओं को भी मैं हार्दिक बधाई देता हूँ जिनकी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को और भी गरिमामय बना दिया । डॉ. अशरफ़ अली ने कहा कि ख़्वाजा अब्दुल मुंतक़िम की ये कृतियाँ न केवल विधि-जगत के शोधकर्ताओं के लिए दिशा-दर्शक हैं, बल्कि समसामयिक सामाजिक और वैचारिक विमर्श को नई दिशा प्रदान करती हैं । अंत में प्रतिभागियों के लिए हाई-टी की व्यवस्था की गई जिसने समारोह की गरिमा और आत्मीयता को और भी प्रखर कर दिया।
एक टिप्पणी भेजें