चार दिनों के संघर्ष के बाद आखिरकार मिली हाथियों से मुक्ति, बच्चों की सुरक्षा बनी प्राथमिकता।

पत्रकार और 'हांथी फैन' ग्रुप की मदद से गुमला से खदेड़े गए जंगली हाथी।


जागता झारखंड संवाददाता ब्यूरो चीफ गुमला।गुमला/लोहरदगा (झारखंड)

: पिछले पांच दिनों से गुमला जिले के भरनो प्रखंड अंतर्गत सूपा मलगो गांव में दहशत का पर्याय बने जंगली हाथियों के एक झुंड को मंगलवार को आखिरकार स्पेशल टीम ने सुरक्षित खदेड़ दिया है। यह सफलता वन विभाग, स्थानीय प्रशासन और जागरूक नागरिकों के संयुक्त प्रयास का नतीजा है। इस पूरे ऑपरेशन में लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के पत्रकार शकील अहमद, समाज सेवी मंसूर अंसारी, और ब्लॉगर विष्णु एसटी सहित स्थानीय ग्रामीणों का अभूतपूर्व सहयोग रहा, जिसने मानव-वन्यजीव संघर्ष को एक मानवीय मोड़ दिया।

सूपा मलगो से तिलसिरी पतरा तक का सफल रेस्क्यू।

हाथियों के इस झुंड ने सूपा मलगो गांव में अड्डा जमा लिया था, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल था। लगातार निगरानी और प्रयास के बाद स्पेशल टीम हाथियों को सुरक्षित ढंग से लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत तिलसिरी पतरा जंगल तक खदेड़ने में कामयाब रही।

छोटी जानों की चिंता: थकान से चूर हैं हाथी के बच्चे।

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि झुंड में छोटे हाथी के बच्चे भी शामिल हैं। लगातार भटकाव और खदेड़ने की प्रक्रिया के कारण वे बहुत ज्यादा थके हुए हैं। बचाव टीम की प्राथमिकता है कि इन थके हुए बच्चों को जल्द से जल्द उनके सुरक्षित और शांत ठिकानों तक पहुंचाया जाए। टीम को उम्मीद है कि मंगलवार की रात तक यह जटिल कार्य पूरा कर लिया जाएगा।

हांथी फैन व्हाट्सएप ग्रुप बना संकटमोचक।

इस अभियान की सफलता का एक बड़ा श्रेय 'हांथी फैन' व्हाट्सएप ग्रुप को जाता है, जिसके एडमिन लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड पत्रकार शकील अहमद हैं। यह ग्रुप कई जिलों के जागरूक सदस्यों को जोड़ता है और जंगली हाथियों की गतिविधि की सटीक और त्वरित जानकारी साझा करता है।

पत्रकार शकील अहमद ने इस ग्रुप के माध्यम से वन विभाग को समय रहते महत्वपूर्ण अपडेट दिए, जिससे कार्रवाई तेज हुई। वन विभाग के अधिकारी ने इस सराहनीय पहल के लिए सार्वजनिक रूप से पत्रकार शकील अहमद भंडरा का धन्यवाद किया, जो यह दर्शाता है कि डिजिटल जागरूकता संकट प्रबंधन में कितनी सहायक हो सकती है। यह घटना दर्शाती है कि जब नागरिक, मीडिया और प्रशासन मिलकर काम करते हैं, तो वन्यजीवों और इंसानों दोनों के लिए सुरक्षित समाधान निकालना संभव है।





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