जागता झारखंड संवाददाता पाकुड़ (झारखंड):शहर की सड़कों पर दिन-रात गुजरते ट्रक... और हर ट्रक की कहानी एक ही — अवैध पत्थर चिप्स का कारोबार, जो अब खुलेआम प्रशासन की आंखों में धूल झोंक रहा है। पाकुड़ डीसी ऑफिस से लेकर नगर थाना, फिर मुफ़्सिल थाना होते हुए बंगाल के मंडियों तक — हर रास्ता इस गोरखधंधे का साक्षी बन चुका है।
सवाल उठता है — क्या सच में किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा?
या फिर सब कुछ देखकर भी “अनदेखा” किया जा रहा है?
सूत्रों के मुताबिक, इन दिनों पाकुड़ से निकलने वाले ट्रकों में रोज़ाना हजारों टन पत्थर चिप्स लदे होते हैं। कोई रोक-टोक नहीं, कोई जांच नहीं — बस सिर हिलाते हुए “पास” कर देते हैं चेकपोस्ट कर्मी। कशीलाचौक, पियदापुर, चांदपुर और यहां तक कि थाने के सामने से गुजरते ये ट्रक जैसे किसी “खुली छूट” पर चल रहे हों।
रात के अंधेरे में लपटे हुए चेकपोस्ट कर्मी जब अपनी कुर्सी पर बैठते हैं, तो हर गुजरते ट्रक के साथ सिर्फ धूल नहीं उड़ती, उड़ता है “कानून का मज़ाक”। कुछ नोटों की खनक पर आँखें बंद हो जाती हैं, और फाइलों में सब कुछ “नियम के अनुसार” बताया जाता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि ये खेल नया नहीं है, बल्कि सालों से चल रहा रैकेट अब चरम पर है।
ट्रक लाइन में लगते हैं, नंबर बोलकर पास होता है, और फिर पाकुड़ की सीमा पार करते ही बंगाल की मंडियों में उतरता है वही अवैध माल।
एक ट्रक चालक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा —
साहब, हर चौक पर देना पड़ता है। अगर नहीं दें, तो रोक देते हैं, चालान बना देते हैं। सबको हिस्सा चाहिए।”
प्रशासन के बड़े अफसरों को भी इस बात की जानकारी है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ बयानबाज़ी।
डीसी ऑफिस से महज़ कुछ किलोमीटर दूर यह सब होता है — और कोई रोकने वाला नहीं।
यह कहानी सिर्फ अवैध खनन या ट्रकिंग की नहीं, यह कहानी है मिलिभगत की, भ्रष्टाचार की और सिस्टम की खामोशी की।
जहां कानून की कुर्सी पर बैठे लोग खुद कानून को “लपेट” लेते हैं — और चेकपोस्ट पर बैठा कर्मी बन जाता है इस पूरे अवैध साम्राज्य का “दरबान”। पाकुड़ में अब सवाल सिर्फ इतना नहीं कि ट्रक कैसे जा रहे हैं- सवाल यह है कि आखिर रोक कौन रहा है?
कानून अगर बिकने लगे, तो अपराधी छिपते नहीं... खुलेआम गुजरते हैं, थाने के सामने से।
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