मोबाइल की स्क्रीन में कैद बच्चों की भविष्य, बच्चों में बढ़ रहा टेंशन और डिप्रेशन।



83 फीसदी मोबाइल की लत, 60 फीसदी किशोरों में डिप्रेशन का खतरा।


जागता झारखंड संवाददाता शकील अहमद।भंडरा/लोहरदगा

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 बच्चों में मोबाइल की लत और बढ़ता स्क्रीनटाइम उनका बचपन छीन रहा है। आज शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां बच्चे स्मार्टफोन के आकर्षण से बचे हों। 83 फीसदी बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, 60 फीसदी किशोरों में डिप्रेशन का खतरा। बच्चों की दिनचर्या में मोबाइल का बढ़ता दखल उन्हें न केवल अपनों से अलग-थलग कर रहा है, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से चिड़चिड़ा और बीमार बना रहा है, जो अभिभावकों के लिए चिंता का विषय बना है।


बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत से बढ़ी अभिभावकों की चिंता।


बच्चों में बढ़ती मोबाइल-स्क्रीन की लत आज अभिभावकों के लिए बड़ी चिंता बन गई है। बच्चों को इस डिजिटल निर्भरता से निकालने के लिए कई अनोखे और रचनात्मक प्रयोग किए जा रहे हैं। कहीं नो स्क्रीन डे अभियान चलाया जा रहा है तो कहीं बच्चों को आउटडोर गेम्स खिलाए जा रहे हैं। पढ़ने के रोचक तरीके अपनाकर शिक्षक बच्चों को मोबाइल की निर्भरता से दूर ले जा रहे हैं। 

पढ़ाई और सेहत दोनों पर पड़ रहा भारी असर।

ज्यादा स्क्रीन टाइम पढ़ाई और सेहत दोनों के लिए खराब है। मोबाइल पर हिंसक गेम खेलने और आपत्तिजनक सामग्री देखने के बाद बच्चा अकेला रहना पसंद करता है। छोटी-छोटी बातों पर नाराज होता है। मोबाइल हाथ से लेते ही गुस्सा करता है या तोडफ़ोड़ करने की कोशिश करता है, अभिभावकों को बच्चों से मोबाइल की लत छुड़वाने के लिए रचनात्मक पहल करने की जरूरत है।

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