डॉ कृपा शंकर अवस्थी : राज्य के अंगिभूत कॉलेजों के सैकड़ों कर्मचारियों क़ो सेवा से बेदखल क
रने और लगातार विगत पांच माह से राजभवन रांची के समक्ष धरना दे रहे कर्मचारियों की दुर्दशा पर निरपेक्ष बनी झारखण्ड सरकार, आँख कान बंद किये सोई हुई है। सैकड़ों कर्मचारियों के शातिपूर्ण आंदोलन पर संवेदनहीन बनी सरकार खुद क़ो बढ़चढ़ कर जनहितैषी दिखाती फिर रही है। झारखण्ड सरकार का यह असली चेहरा अब किसी से छुपा हुआ नहीँ है। नई शिक्षानीति के बहाने सेवारत सारे कर्मियों क़ो सेवा से जबरन वंचित कर आखिर सरकार कैसी शिक्षा नीति लागू करना चाहती है। हमारे माननीय इतने हृदयहीन क्यों? सरकार आखिर अपने ख़ातिहानी नागरिकों के साथ ऐसी क्रूरता क्यों करने पर तुली हुई है। सारे आंदोलनरत कर्मी लगातार चिलचिलाती धुप, गर्मी, लू और बरसात झेलते इन विगत पांच महीनों में पूर्णतः अनुशासित और शांतिपूर्ण आंदोलन करने क़ो दृढ प्रतिज्ञ हैं, फिर भी सरकार के एक भी नुमाइंदे उनकी बात सुनने की पहल क्यों नहीँ कर रहे? सत्ता किसी की भी हो प्रजातंत्र में स्थाई सरकार किसी की भी अनंत काल तक़ नहीँ टिकती.क्या हमारे राज्य की झामुमो सरकार एकछत्र राज अनंत काल तक़ चलाती रहेगी, वह भी तब ज़ब सैकड़ों कर्मी सड़क पर बिना डिगे डटे हुए हैं.अब शायद यह कहना गलत नहीँ होगा कि किसी दिन ज़ब इन आंदोलनकारियों का धैर्य चुकेगा, वे अपने सारे सहयोगियों के साथ गांव,शहर,कस्बे,में उतर, जन जन तक़ अपनी मशाल लेकर घूमने लगेंगे तो कोई भी सरकार खुद क़ो बचा नहीँ पाएगी, क्योंकि इन आंदोलनरत कर्मियों में समाज के सभी वर्गों यहाँ तक़ कि महिलाएं भी एकजुट हैं और आंदोलन में पूरी दृढ़ता से जूटी हुई हैं.
आंदोलनरत कर्मियों के साथ किसी राजनीतिक दल के नेता नहीँ हैं, विपक्षी पार्टियां खुद झारखण्ड में सर्वमान्य लोकप्रिय नेता विहीन हैं, राष्ट्रीय मिडिया, बड़े घराने वाले टीवी चैनल भी सेकेण्डभर क़ो कवरेज नहीँ दे रहे,परन्तु इससे झारखण्ड की मिलीजुली सरकार खुद क़ो सुरक्षित न समझे.आजादी के बाद लगातार शासनारुढ पार्टी का हश्र देश देख चुका है, अब तिनके तिनके बिखर चुके हैं,विलीन भी होते जा रहे हैं,जोर लगाने के बावजूद भी कहीं पूनर्रवापसी करते नहीँ दिख रहे और गली गली घूमने क़ो विवश है, जनता की अकांक्षाओं के अनुरूप कार्य न करने का नतीजा उन्हें समझ आ रहा होगा, उनके कोई हथकंडे, विदेशी साजिश तक़ नाकाम साबित हो रही है, ऐसे में मुलवासियों के साथ गद्दारी कबतक वर्तमान झारखण्ड सरकार झेल सकेगी,संवेदनहीन सरकारें गर्त में ऐसी जमींदोज और दफन हो जाती हैं कि शायद ही कोई नामलेवा रह जाता हो.सांकेतिक भूख हड़ताल के बाद इन कर्मचारियों के संकल्प से भी चौकन्ना और चिंतित होना भूल गई है राज्य सरकार, क्या सरकार उनके आमरण अनशन तक़ की परीक्षा लेने का मन बना चुकी है.या उनके सामूहिक आत्मदाह तक़ भी असंवेदन बनी रहेगी, यदि ऐसा तो उसे अपना हश्र देखने क़ो तैयार रहना चाहिए, समय रहते इन आंदोलनरत कर्मचारियों से वार्ता क़ो आगे आए सरकार, अबतक नई शिक्षा नीति के बहाने माननीय राज्यपाल क़ो बदनाम करने की उसकी चाल सारे आंदोलनरत कर्मी समझ चुके हैं, दिनांक 23 अगस्त की माननीय राज्यपाल से वार्ता के बाद उनमें कोई दुविधा नहीँ रह गई है, राज्य सरकार ने अपनी कुत्सित मानसिकता की आड़ में कार्यरत सारे कर्मियों क़ो सेवा से जबरन निकाल बाहर किया है,क्या कोई आदेश राज्य सरकार दिखा सकती है जिसमें इंटर की पढ़ाई अंगिभूत कॉलेजों से समाप्त करने के साथ इन वर्षो सेवा दे चुके कर्मियों क़ो हटाने की मंशा माननीय राज्यपाल महोदय ने कर रखी है. फिर नई शिक्षा नीति के बहाने पूर्वमे कभी किसी शिक्षा नीति के तहत ऐसे कर्मियों क़ो सेवा से कभी वंचित नहीँ किया गया है.नई शिक्षा नीति तो पहले भी 1965,1980,2005 में भी कई बार लागू की जाती रही है. पर क्या कभी किसी सेवारत कर्मी क़ो सेवा से वंचित किया गया है?अनुभवी कर्मचारियों की जगह वर्तमान सरकार अपने चाटुकार,ठेकेदारों की सलाह से आउट सोर्सिंग द्वारा अनुभवहीन लोगों की बहाली की जुगाड़ में क्यों लगी है. क्या ऐसा वह कभी कर पाएगी, क्या तब रोस्टर नियमों का पालन भी करेगी, जैसा एक श्रीमान राज्यपाल के समक्ष एक नुमाइंदे ने आंदोलनरत कर्मी से सवाल किये थे. तब कि सरकारों ने इसपर कभी सवाल खडे किये थे क्या, क्यों चुकें करती रही थी सरकारें?
सरकार के चापलूस चमचे अपने मनसूबों में कभी कामयाब नहीँ हो पाएंगे,शिक्षा के मंदिरों की पवित्रता सरकार जरूर बचाए नहीँ तो शिक्षाके मंदिर अपवित्र हिंसा के केंद्र बन जाएंगे और तब सरकार अपना अस्तित्व खुद संकट में डाल बैठेगी.
विगत दिनों माननीय राज्यपाल ने आंदोलनरत ऐसे कर्मचारियों से फिर वार्ता करके आश्वासन दिया, पर राज्य सरकार अबतक चुप है. नई शिक्षा नीति लागू करने के बहाने वर्षों तक़सेवा दे चुके कर्मियों क़ो सड़क पर बिठा देने का उसका खेल ऐसे भी समझा जा सकता है कि, विगत तीन जुलाई क़ो स्व शिक्षा मंत्री राम दास सोरेनजी इंटर क़ी पढ़ाई अंगिभूत कॉलजों में जारी रखने का साहसिक बयान देते हैं, फिर क्या हुआ कि तीन अगस्त के बाद हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उक्त कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई अलग करने पर सरकार सहमत हो गई. समझ नहीँ आता इंटर की पढ़ाई सरकारी कॉलेजों से हटा दिए जाने से क्या उत्तम उदेश्य हासिल किया जा सकेगा.और फिर इंटर शिक्षण से जुड़े शिक्षकों का क्या हश्र होगा. झारखण्ड राज्य निर्माण होने के बाद आजतक इंटर शिक्षक और अशैक्षणिक कर्मियों की बहाली क़ोई सरकार नहीँ कर पाई है. सरकारीअनुदान प्राप्त प्लस टू इंटर स्कूलों में भी न तो पर्याप्त विषयवार शिक्षक हैं, न प्रयोगशालाएं, यहाँ तक़ की अनिवार्य कम्प्यूटर शिक्षक भी बहाल नहीँ किये गए है, ऐसे में नई शिक्षा नीति लागू किये जाने से क्या कुछ नया हासिल किया जा सकेगा वर्तमान सरकार क्या बताएगी ?
अंगिभूत कॉलेजों से इंटर की पढ़ाई बंद कर देने के कारण समाज के अत्यंत कमजोर आदिवासी छात्रों के सामने छात्रावासों की गंभीर समस्या आन ख़डी हुई है, जिसके निदान की तत्काल कोई व्यवस्था नहीँ है. प्रतिवर्ष छात्र छात्राओं की बढ़ती संख्या भी बेसँभाल होती जा रही है, सारे क्लास वर्गो में सीटें भले बढ़ा तो दी गईं हों, पर स्कूलों के कमरे इतने सक्षम नहीँ कि सभी छात्र किसी कमरे में एकसाथ विषयवार बैठ सकें.निजी स्कूलों की स्तिथि सरकारी संस्थानों से थोड़ी अच्छी जरूर है पर वे भी सीट से ज्यादा विधार्थियों के दाखिले लेने में असमर्थ हैं, इधर नई शिक्षानीति के तहत कई नए पाठ्यक्रम प्रस्तावित हैं, प्राकृतिक विज्ञानं, आपदा प्रबंधन के साथ कई प्रशिक्षण कार्यक्रर्मों क़ो लागू करने की व्यवस्था लगभग शून्य है. वर्तमान समय में रोजगारोंमुखी शिक्षा के अभाव में नई शिक्षा नीति लागू कर दिए जाने से भी कोई उपलब्धि हासिल करना अब भी दूर की कौड़ी है.बनी बनाई व्यवस्था की उपेक्षा करके वांछित लक्ष्य की आशा सिर्फ छलावा मात्र से ज़्यादा कुछ नहीँ है.वर्तमान सरकार शिक्षा के साथ खिलवाड़ बंद करे, संवेदनशीलता दिखाए नहीँ तो राज्य की शिक्षा व्यवस्था के साथ खुद क़ो संकट में डाल लेगी. उचित शिक्षा दिए बिना, राज्य के पिछड़ेपन, ग़रीबी और बीमारी क़ो कभी दूर नहीँ कर सकेगी,क्या नई शिक्षा व्यवस्था क़ो लेकर बुद्धिजीवियों के विचारों पर कभी गौर करने क़ो राजी है झारखण्ड सरकार, या सिर्फ अपने लोगों से घिरी सारे घटनाक्रम पर मौन धारण किये रहेगी। माननीय उच्च और सर्वोच्च न्यायालय से वर्षों सेवा दे चुके कर्मियों क़ो उचित न्याय जरूर मिल जाएंगे, पर इसके लिए इन सभी साढ़े सात-आठ सौ कर्मियों क़ो न्यायालयों से अपनी अपनी गुहारें लगानी होंगी, लम्बे समय तक़ न्यायालय के फैसलों का इंतजार करना होगा, ऐसे बदनशीब कर्मियों के पास न इतने सामर्थ्य हैं न इतने साधन कि बाल बच्चों भरे परिवार चलाते वर्षों अपने पक्ष में फैसलों का धैर्य पूर्वक इंतजार कर सकें.निराशा में कोई गलत अंजाम क़ो गले न लगा लें. सरकार के पास निःसंदेह बड़ा हृदय होता है, सरकारें न्यायालयों की तरह बंद और सीमित विकल्पों में बंधी नहीँ होतीं, वे विधान रचती हैं, ऐसे में अपनी चुनी सरकार से सारे कर्मी क्यों न आशा और टकटकी लगाए गुहार लगाते रहें.हाँ उन्हें अपनी चटटानी एकजुटता और संघर्ष की अलख जगाए रखनी जरूरी है. पांच माह ही क्यों उनका संघर्ष चाहे जितना लम्बा खिचे असंवेदनशील सरकार क़ो जगाने का दायित्व वे न भूलें.शान्तिपूर्ण अनुशासित आंदोलन जारी रखें, अनुकूल परिणाम जरूर मिलेगा.एक न एक दिन यह अंधेरा जरूर छंटेगा, नया सूरज जरूर चमकेगा, सभी आंदोलन कर्मी निराश न होने पाएं, गहन निराशा में कोई गलत कदम से बचें।
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