जागता झारखंड : बिहार में हुए जाति जनगणना की त्रुटियों का अभी संपूर्ण समाधान नहीं हुआ है। रह रहकर इसकी मांग सरकार से होती रही है और राज्य सरकार भी इसके आमूल चुल सुधार करने और इसके पटाक्षेप करते की साफ मंशा, इरादा या इच्छाशक्ति नहीं रखती है।
राज्य सरकार की अंतिम मंत्रीपरिषद की बैठक 3 अक्टूबर 2025 को क्रम संख्या 69 के तहत सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा कलवार एवं अन्य मुस्लिम जाति कलाल / एराकी की स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाने के संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में संपन्न हुई थी। तदुपरांत सरकार ने अपने "संकल्प" पत्र के 24 घंटे के भीतर दिनांक 1 अक्टूबर 2025 को अपर मुख्य सचिव डॉ बी. राजेंद्र ने बिहार राजपत्र में प्रकाशन का आदेश पारित कर दिया । जो अंततः 6 अक्टूबर 2025 को बिहार गजट में प्रकाशित भी हो गया।
सरकार ने यह माना कि बनिया जाति के अंतर्गत कलवार जाति के साथ कलाल / एराकी एक साथ अंकित रहने के कारण जाति प्रमाण पत्र निर्गत करते में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, जो अनुचित एवं भ्रामक है। कलवार समुदाय से आने वाले मंत्री, विधायक संजय सरावगी से मंत्रणा लेने, कलवार जाति के सदस्यों एवं जनप्रतिनिधियों द्वारा अंकित सनातन धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में कलवार शब्द का जो उल्लेख किया है वह निम्न है ।
तुलसीदास जी के श्री रामचरित मानस के पेज संख्या 986, दोहरा 99 उ. का. 2 में। जे वर्णघाम तेली कुम्हारा स्वपचं किरात कोल कलवारा
अर्थात तेली, कुम्हार, सफाई कर्मचारी आदिवासी, कौल, कलवार आदि अत्यंत नीच वर्ण के लोग हैं।
यहाँ तक की संत कबीर दास जी ने कलाल जाति पर 2 दोहा लिखे है
राम रसाइन प्रेम रस, पीवत अधिक रसाला
कबीर पीपणा दुल्र्म है, मांगें सींस कलाल '
कबीर भाटी कलाल की, बहुतेक बैठे आई।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तो पिया न जाई।
भावार्थ - कबीर कहते हैं - कलाल की भट्टी पर बहुत सारे आकर बैठे गये है, पर इस मदिरा को एक वही पी सकता है जो अपना सिर कलाल को खुशी-खुशी सौप देगा, नहीं तो पी ही नहीं सकता।
बहरहाल.........., आनन फानन में लिया गया यह निर्णय कलाल/ एराकी जाति के लिए फजीहत बना। मात्र 24 घंटे के भीतर बिहार सरकार ने पिछड़ा वर्गों के लिए राज्य आयोग से परामर्श प्राप्त कर क्रियान्वयन भी कर दिया । राज्य सरकार को चाहिए था कि कलाल/एराकी जाति के प्रतिनिधियों से राय,परामर्श,विचार लेकर इसको अंतिम मुर्त रूप देते तो सरकार यश का भागी बनती। जबकि केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में कलाल/एराकी जाति क्रम संख्या 124 (बी) पर अंकित है।
कलाल/एराकी समाज जानना चाहती है कि अति पिछड़ा वर्ग आयोग ने किस ज्ञापन,अनुशंसा या आवेदन पर निर्णय लिया । "संकल्प" पारा 3 (2) के अंतर्गत सरकार ने कलाल और एराकी जाति को दो विभिन्न उपजाति मानकर आपस की एक जाति को दो भागो सें विभक्त कर दिया । यह राज्य सरकार और पिछड़ा वर्ग आयोग का पररपर जल्दबाजी में लिया गया कलाल/एराकी जाति का भायादोहन है। सम्मान,पहचान और अधिकारों का अतिक्रमण है।
जाति जनगणना से पूर्व ही कलाल/ एराकी समाज ने बनिया जाति के अंतर्गत रखने के औचित्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगाकर सरकार को इससे अलग रखने की मांग किया था। जनगणना की रिपोर्ट आने क बाद कलाल/एराकी जाति की धार्मिक पहचान और सामाजिक अस्तित्व भी खतरे में तब पड़ गई , जब इस जाति के लोगों ने खुद को हिंदू बनिया के अंतर्गत कलवार जाति के भीतर पाया।
कलाल/एराकी जाति एकमात्र पिछडी मुस्लिम जाति है, जो हिंदु बनिया वर्ग में सूचीबद्ध है। जनगणना के समय इस जाति को ना मुस्लिम श्रेणी में रखा गया और ना ही अलग कोड नंबर देकर आवंटित किया गया। जनगणना के समय से ही सरकार का इस जाति के साथ सौतेला व्यवहार रहा है। जो अब और भी उजागर होकर जनमानस के पटल पर दो विभिन्न उपजाति बनाकर आपस की एकता को विभक्त कर बांटने का स्पष्ट कुप्रयास किया है। सरकार को यह जानना चाहिए की कलाल या एराकी मुस्लिम जाति की एक ही जाति है। बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलू है। कसाब,कसाई/कुरेशी, कुंजरा/राईन, भटियारा/फारुकी, द्युनिया/मंसूरी, दर्जी/इदरीसी, मोमिन-जुलाहा/अंसारी इत्यादि जाति है। इसी प्रकार कलाल/एराकी भी एक ही जाति है।
यह समय कलाल/एराकी जाति के लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। समाज के सभी लोगों लिए समुद्र मंथन है। मिल बैठकर, सर जोड़कर अंतिम निर्णय लेने की आवश्यकता है। क्यॉंकि ना सिर्फ सरकार ने हमारी धार्मिक पहचान को हिंदू बनिया के श्रेणी में कर रखा है, बल्कि हमें अलग से जाति कोड नंबर आवंटन भी नहीं दिया है। यह हमारी पहचान पर प्रहार है। हमारी भावी पीढियों की सिनाख्त पर प्रश्न चिन्ह है। हमारी संयुक्ता को विभक्त कर सरकारी समारस्ता में उचित भागीदारी से वंचित करने का कुप्रयास है । यह समस्या मात्र बिहार की ही नहीं झारखंड, उड़ीसा और बंगाल सहित चार राज्यों की साझा समस्याओं से ग्रस्त है । निकट भविष्य में शादी ब्याह में विकराल समस्या उत्पन्न होगी । आपसी एकता और सामाजिक ताना-बाना में घोर कमी होगी। कटुता का संचार होगा। एक जाति के लोग दो श्रेणी,दो गुटों में बटते नजर आएगे। जाति प्रमाण-पत्र बनाने में समस्या आएगी। संगठन,तंजीम में टकराव उत्पन्न होगा। निकट भविष्य मे राष्ट्रीय जनगणना के समय जाति श्रेणी को लेकर घोर भ्रम उत्पन्न होगा। जिससे जाति की जनसंख्या दो भागों में बट कर उचित भागीदारी के संयुक्त आंकड़ा और संयुक्त एकता से सदा के लिए वंचित हो जाएंगे। समाज के सभी लोग सरकारी कार्य हेतु नौकरी, जमीन रजिस्ट्री एवं उन सभी कार्यों के लिए कलाल/एराकी जाति का खुलकर जयघोष करें लिखवायें, बनवाएं। क्योंकि भारत और बिहार की राजनीति जाति और धर्म की कसौटी पर चक्रवात करती है। कलाल/एराकी जाति को चाहिए कि भविष्य की रूपरेखा का सृजन करें। भावी पीढ़ी को जाति की राजनीतिक अधिकार प्राप्ती का नीतिकार बनाएं। उसके लिए आवश्यक है कि कलाल / एराकी जाति के नाम को आत्मसात करें। निकट भविष्य में जस्टिस रोहिणी आयोग और जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन आयोग की रिपोर्ट शीघ्र ही आने वाली है।
जस्टिस रोहिणी आयोग देश की योजना और सत्ता की राजनीति को सीधे-सीधे प्रभावित करेगी। यदि जस्टिस रोहिणी आयोग की सिफारिशें लागू हुई तो ना सिर्फ देश की राजनीति का दशा दिशा बदलेगा बल्कि ओबीसी आरक्षण का स्वरूप भी बदल जाएगा। रोहिणी आयोग ओबीसी आरक्षण मे बैकव्ड्स में फारवर्डस जाति के बंदरबांट को ख्त्म कर देगी। रोहिणी आयोग को ओबीसी जातियों के अंदर उप-जातियों की पहचान करने, किन-किन उप- जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिला इसका अध्ययन करने, जातियों और समुदायों के बीच आरक्षण का लाभ और असमानता जांचने ,जाति उप-जाति का वर्गीकरण के लिए वैज्ञानिक दष्टिकोण, प्रतिमानको, मानदंड तय करने व ओबीसी की केंद्रीय सूची में 2633 जातियों के प्रविष्टियों का अध्ययन करना और किसी भी प्रकार का पुनरावृति, अस्पष्टता, विसंगति तथा वर्तनी प्रतिलेखन की त्रुटि मे सुधार करने जैसा महत्वपूर्ण शक्तियां रोहिणी आयोग को निहित है। रोहिणी आयोग ने सरकार को सुझाव दिया है कि ओबीसी को 4 वर्गों में बॉटकर क्रमसा 2.6.9 और 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाए। इस प्रकार ओबीसी के लिए तयशुदा 27 प्रतिशत का आरक्षण उप जातियों के 4 वर्गों में बंट जाएगा।
वहीं अनुच्छेद 341 आयोग या के० जी० बालाकृष्णन आयोग मुस्लिम समाज को मूख्यधारा में लाने व उसका सार्थक, समुचित, राजनीतिक विकास करने का आयोग है। अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज, जो भारत की कुल आबादी में 15 फीसदी मुस्लिम है जिनमें से 80 फीसदी आबादी दलित व पिछडी मुस्लिम समाज की है को अनुसूचित जाति का दर्जा व आरक्षण का लाभ नहीं मिला है को दिलाने के लिए आधारित है। साथ ही केन्द्र सरकार की नौकरियों में 15 प्रतिशत आरक्षण, अनुसूचित जन जाति के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण और लोकसभा की कल 543 सीटों में से 84 सीट अनुसूचित जाति तो 47 सीट अनुसूचित जनजाति क लिए आरक्षित है। जबकि देश भर की कृल 4120 विधानसभा सीटों में से 614 सीट अनुसूचित जाति तो 554 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यानि लोकसभा की कुल 131 सीट तो विधानसभा की कुल 1168 सीटों पर मुस्लिम या ईसाई चुनाव नहीं लड सकता, जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। जस्टिस के० जी० बालाकृष्णन आयोग मुस्लिम और
ईसाई दलितों को भी अनुच्छेद 341मे शामिल करने की अनुशंसा व सिफारिश केन्द्र सरकार से करेगी। जांच आयोग मुस्लिम समुदाय की हर उस परिरिथति की जाँच करेगा जो अन्य समाज या समुदाय से पिछड गये। फिर वो चाहे उनकी शेक्षणिक, समाजिक, आर्थिक स्थिति हो या राजनीतिक । जस्टिस बालाकृष्णन आयोग मुस्लिम पिछड़ी समाज को अनुच्छेद 341 मे शामिल करती है तो ये भारत की राजनीति का महावत अथवा सारथी साबित होगा।
हरीश अहमद मिनहाज
लेखक, सामाजिक और राजनीतिक शोधकर्ता हैं।
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