हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और प्रकृति से जुड़ी मान्यताओं का अद्भुत संगम करमा पर्व

 



जागता झारखंड संवाददाता बजरंग कुमार महतो घाघरा
(गुमला): जनजातीय परंपरा और लोकआस्था का प्रतीक माने जाने वाला प्रकृति पर्व करमा इस वर्ष भी घाघरा मुख्यालय सहित विभिन्न गांवों में पूरे हर्ष और आनंद के साथ मनाया गया। गाँव-गाँव में वातावरण उल्लासमय रहा। इस अवसर पर न केवल महिलाएँ और युवतियाँ, बल्कि बच्चे, युवक और वृद्ध भी उत्सव में शामिल हुए। धार्मिक आस्था, भाई-बहन के स्नेह और प्रकृति से जुड़ाव की इस अद्भुत परंपरा ने पूरे क्षेत्र को उमंग और श्रृद्धा से भर दिया।

बहनों ने की भाइयों की उम्र लंबी होने की कामना

करमा पर्व मुख्य रूप से बहनों द्वारा अपने भाइयों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। परंपरा अनुसार, युवतियों ने दिनभर निर्जला उपवास रखा और करमा माता से अपने भाइयों की दीर्घायु जीवन की मंगल कामना की। संध्या समय पूजा की शुरुआत पारंपरिक विधि-विधान के साथ हुई। स्थानीय पुजारियों और बैगाओं ने मंत्रोच्चार के बीच अनुष्ठान संपन्न किए।

डीजे की धुन और परंपरागत लोकगीतों से गूँजा गाँव

पूजा के समय पूरा वातावरण लोकगीतों और पारंपरिक स्वर लहरियों से गूँजता रहा। साथ ही, आधुनिक शैली का भी आकर्षण देखने को मिला। युवाओं ने डीजे की थाप पर जमकर नृत्य किया। एक ओर जहाँ महिलाएँ पारंपरिक गीतों के साथ पूजा-अर्चना में लीन रहीं, वहीं दूसरी ओर बच्चे और युवक उत्साह से झूम उठे। इससे पूरा क्षेत्र उत्सवमय वातावरण से भर गया।

करमा डाल का विशेष महत्व

करमा पर्व की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा करमा डाल की पूजा होती है। श्रद्धालु घर और पूजा स्थल पर लाकर करमा डाल को स्थापित करते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यह डाल प्रकृति के प्रति आस्था और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। पूजा के बाद इसे विसर्जित करना अनिवार्य होता है।

कल गुरुवार को, निर्धारित परंपरा अनुसार, छिलका रोटी और दातुन को करमा डाल में बाँधकर आसपास के जलाशय में श्रद्धालु इसे विसर्जित करेंगे। इसके साथ ही पर्व की औपचारिक समाप्ति होगी।

प्रकृति और भाई-बहन के रिश्ते का पर्व

करमा पर्व की विशेषता यह है कि यह केवल धार्मिक या पारिवारिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के गहरे संबंध को भी उजागर करता है। यह पर्व इस बात का प्रतीक है कि मानव का जीवन पेड़-पौधों और प्रकृति के बिना अधूरा है।

समाज में एकजुटता का प्रतीक

करमा पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता और मेलजोल का भी माध्यम है। पर्व में शामिल होकर गाँव-गाँव के लोग आपसी भाईचारा और सहयोग की भावना को और प्रगाढ़ करते हैं। अंततः करमा पर्व धार्मिक आस्था, सामाजिक सद्भावना और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का ऐसा सुंदर प्रतिरूप है, जो न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी परंपराओं और प्रकृति से जोड़ने का कार्य करता है।

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